हिंदी मीडियम स्कूल है ही नहीं, फिर भी हो गया गरीब बच्चों का एडमिशन, आरटीई में बड़ा फर्जीवाड़ा उजागर

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राजनांदगांव। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत गरीब बच्चों को स्कूलों में एडमिशन दिलाने की प्रक्रिया में बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। शहर के एक नामी निजी स्कूल ने आरटीई पोर्टल पर हिंदी माध्यम के नर्सरी कक्षा में सीटें दिखाकर 10 बच्चों का दाखिला कर लिया, जबकि हकीकत यह है कि स्कूल में हिंदी माध्यम की कक्षाएं संचालित ही नहीं होतीं।
छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल ने डीपीआई संचालक को लिखित शिकायत कर इस पूरे घोटाले की जानकारी दी है। पॉल ने बताया कि उक्त स्कूल ने शिक्षा सत्र 2025-26 में हिंदी माध्यम की नर्सरी में 10 सीटें आरक्षित दिखाकर बच्चों से आवेदन मंगवाए। दस्तावेज जांच के बाद डीपीआई द्वारा ऑनलाइन लॉटरी निकाली गई और 10 बच्चों का चयन भी हो गया। स्कूल ने इन बच्चों को दाखिला भी दे दिया, जबकि स्कूल में हिंदी माध्यम की कक्षाएं ही नहीं चलतीं।
मामला तब और गंभीर हो गया जब द्वितीय चरण में रिक्त सीटों की जानकारी मांगी गई। स्कूल ने इस बार अंग्रेजी माध्यम की नर्सरी में 10 सीटें रिक्त दिखाईं। प्रक्रिया फिर वही दोहराई गई, लॉटरी निकली, बच्चों का चयन हुआ, लेकिन इस बार स्कूल प्रबंधन ने बच्चों को एडमिशन देने से इंकार कर दिया। स्कूल ने कहा कि अंग्रेजी माध्यम में गरीब बच्चों के लिए कोई सीट आरक्षित नहीं है।
जांच में सामने आया कि यह तकनीकी गलती जानबूझकर की गई थी। डीईओ, नोडल अधिकारी और स्कूल प्रबंधन की मिलीभगत से इस पूरे फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया।
पॉल का कहना है कि मामले को रफा-दफा करने की कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन पालकों में भारी आक्रोश है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि दोषियों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो वे बच्चों को लेकर बाल अधिकार संरक्षण आयोग और मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाएंगे।
आरटीई कानून के तहत निजी स्कूलों को 25 प्रतिशत सीटें गरीब बच्चों के लिए आरक्षित करनी होती हैं। इसके लिए स्कूलों को सरकारी पोर्टल पर जानकारी अपडेट करनी पड़ती है। लेकिन इस मामले में स्कूल ने झूठी जानकारी देकर न केवल कानून का उल्लंघन किया बल्कि गरीब बच्चों के भविष्य से भी खिलवाड़ किया।
फर्जीवाड़े के उजागर होने के बाद पालकों में भारी आक्रोश है। प्रशासनिक अधिकारियों की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है।
अब देखना यह है कि शिक्षा विभाग इस मामले में कड़ी कार्रवाई करता है या हमेशा की तरह लीपापोती कर मामले को दबा देता है।

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