अपने पुराने धान तस्कर मित्रों को लाभ पहुंचाने भूपेश कर रहे हैं हवाहवाई बयानबाजी : मधुसूदन

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राजनांदगांव। धान खरीदी की मियाद को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेसी नेता भूपेश बघेल द्वारा की जा रही बयानबाजी को पूर्व सांसद एवं प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष मधुसूदन यादव ने लफ्फाजी करार दिया है। उन्होंने भूपेश बघेल को याद दिलाया है कि छत्तीसगढ़ निर्माण के समय कांग्रेस नीत जोगी राज में ही किसानों के प्रति अत्याचार चरम पर थे और किस प्रकार पानी में भिगो-भिगोकर किसानों का धान खरीदा जाता था, उसके बाद ठगेश शासनकाल में खेत की मेढ़ का रकबा घटाकर कम धान खरीदा गया, वहीं अनावारी बढ़वाकर किसानों को मुआवजा से वंचित किया गया। प्रदेश के अन्नदाताओं को ठगा गया और उनका हक मारा गया। पूर्व सांसद मधु ने कांग्रेस नेता भूपेश बघेल पर आरोप लगाया है कि छत्तीसगढ़ निर्माण के समय से सर्वाधिक किसानों के आत्महत्या की दुःखद घटनांएं आपके ही शासनकाल में घटी हैं। आपके मुख्यमंत्रित्वकाल में पादर्शितापूर्ण धान खरीदी तो दूर शासन-प्रशासन के दबाव में उल्टे पटवारी एवं कृषि विभाग ने किसानों को फसल बीमा से भी वंचित करने का जघन्य कृत्य किया है, जिससे प्रदेश के किसानबंधु भलिभांति परिचित हैं। पूर्व सांसद ने आगे कहा है कि वर्तमान में भूूपेश बघेल द्वारा धान कटाई को लेकर हवाहवाई बयानबाजी कर कृषकों को दिग्भि्रमित करने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि धान कटाई अभी प्रारंभिक स्थिति में है, जिसके विक्रय योग्य स्थिति में पहुॅचने में निश्चित रूप से 14-15 नवंबर तक का समय लगेगा। प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष मधुसूदन ने प्रदेश के किसान भाईयों को संबोधित करते हुए कहा है कि कृषकगण धान खरीदी को लेकर निश्चिंत एवं आश्वस्त रहें, क्योंकि साय सरकार पंजीकृत कृषकों का एक-एक दाना खरीदने के लिये प्रतिबद्ध है। पूर्व सांसद ने कांग्रेसी नेता भूपेश से प्रश्न किया है कि किसानों को भरमाने और तिथि कम करने के वक्तव्य के पीछे कहीं उनकी मंशा कोचियों और अपने पुराने धान तस्कर मित्रों को लाभ पहुंचाने तथा सीमावर्ती राज्यों के धान को छत्तीसगढ़ में अवैध रूप से खपाने की सुनियोजित कूटरचित साजिश तो नहीं है? पूर्व सांसद ने चुटकी लेते हुए कहा है कि स्वयं मुख्यमंत्री रहते 15 नवंबर से धान खरीदी प्रारंभ करने वाले भूपेश बघेल एवं कांग्रेस पार्टी अब नींद से जागे हैं, किन्तु इस विषय में बात करने का नैतिक अधिकार खो चुके हैं। इसका प्रमाण उन्हें देश के शीर्ष कृषि प्रधान राज्यों जैसे उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, राजस्थान, ओडिशा में पिछले विधानसभा निर्वाचन में मिली करारी हार से प्रत्यक्षदर्शित है।

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