राजनांदगांव। युग प्रधान गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री सुधाकर जी ने आज यहां कहा कि धर्म आपको वह देता है जो पैसा नहीं दे सकता। धर्म हमें सुख, समृद्धि व शांति दे सकता है, किंतु पैसा सब कुछ नहीं दे सकता। धर्म हमें जीने की कला सिखाता है। दुनिया में चार चीज़ें परम दुर्लभ है-पहला मनुष्य जन्म की प्राप्ति, दूसरा धार्मिक ज्ञान सुनने को मिलना तीसरा श्रद्धा और चौथा पराक्रम करना।
तेरापंथ भवन में अपने नियमित प्रवचन में मुनि श्री सुधाकर जी ने कहा कि मनुष्य जन्म दुर्लभ है, इसे प्राप्त करने के लिए देवी-देवता भी तरसते हैं। उन्होंने कहा कि दुर्लभ चीजों में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण चीज है धार्मिक ज्ञान सुनने को मिलना। यह हर किसी को नसीब नहीं होता। पुण्योदय होता है तब कहीं इसका मौका हमें मिलता है। सुनने का लाभ तभी है जब हम उस पर श्रद्धा करें और पराक्रम करें। मुनिश्री सुधाकर जी ने कहा कि दृष्टि दो प्रकार की होती है पहला सम्यक दृष्टि और दूसरा मिथ्या दृष्टि। सम्यक दृष्टि अर्थात यथार्थ का ज्ञान होना, जो जैसा है उसका वैसा ही स्वरूप दिखाना। उन्होंने कहा कि आप धर्म और आत्मा की शुद्धि को आधार न मानकर निर्जरा को माध्यम मानकर सेवा करें।
मुनि श्री सुधाकर जी ने कहा कि मंत्र तारक भी होते हैं और मंत्र मारक भी होते हैं। जो व्यक्ति धर्म के प्रति गहरी आस्था रखता है, उसे वह सब मिलता है जो उसे पैसे से हासिल नहीं हो सकता। धर्म हमें जीने की कला सिखाता है। हम धर्ममय जीवन जीने का संकल्प करें। इससे पहले नरेश मुनि जी ने कहा कि इस जीवन में तुम अपनी आत्मा का उद्धार कर सकते हो, अपनी आत्मा का कल्याण कर सकते हो। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति धर्म की आराधना करता है, वह अपने जीवन को चमन बना लेता है। आज प्रवचन में कानमलजी पारख, जवरीलालजी सांखला, प्रकाशचंद जी सांखला, सूरजमल गिड़िया उपस्थित थे।