राजनांदगांव। युग प्रधान गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री सुधाकर जी ने आज यहां कहा कि संकल्प चार गोलों की तरह के होते हैं. पहला मोम का गोला, दूसरा काष्ट का गोला, तीसरा लोहे का गोला और चौथा मिट्टी का गोला। हम जैसा संकल्प करते हैं वैसे ही सृष्टि बन जाती है। जो संकल्प में डटे रहे वह निकल गए और निखर गए।
तेरापंथ भवन में आज अपने नियमित प्रवचन में सुधाकर मुनि ने कहा कि कहा कि मोम के गोलों की तरह कुछ लोगों का संकल्प होता है जो आग के सामने आते ही पिघल जाता है। इसी तरह कुछ लोगों का संकल्प थोड़ी सी मुसीबत आती है तो काष्ट के गोले की तरह जल जाता है और थोड़ी ज्यादा मुसीबत आती है तो वह लोहे के गोले की तरह पिघल जाता है, किंतु मिट्टी का गोला कितनी ही आग रहे वह तपकर और मजबूत हो जाता है, निखर जाता है। मिट्टी के गोले की तरह का संकल्प जितनी भी मुसीबत आ जाएएवह तपकर और मजबूत होता जाता है।
मुनि श्री सुधाकर जी ने कहा कि हमारा संकल्प मिट्टी के गोले की तरह होना चाहिए, उसे जितना तपाया जाएगा, वह उतना ही निखरता जाएगा। उन्होंने कहा कि जीवन संघर्ष है। जीवन तपता तब कहीं जाकर वह निखरता है। उन्होंने कहा कि जो चलता है भाग्य भी उसका चलता है और जो रुकता है भाग्य भी उसका रुक जाता है। इसी तरह जो सोता है भाग्य भी उसका सो जाता है। जप और तप में यदि आपका संकल्प दृढ़ नहीं है तो आप बिखर कर टूट जाएंगे। संकल्प बल की कमजोरी ही असफलता का सबसे बड़ा कारण है।
मुनि श्री सुधाकर जी ने कहा कि मानव जन्म से नहीं वरन कर्म से महान होता है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति यू जैसी है। हम जितना पुण्य-पुण्य-पुण्य करते जाएंगे, वह एक छोर में भरता जाएगा और हमारा पाप दूसरे छोर से निकलता जाएगा। साधु-साध्वियों को जीवन मिलता है तो वह सोचते हैं कि वे अपने पाप को यहीं भोगकर जाएं। उन्होंने कहा कि जो रसना में विजय प्राप्त कर लेता है, वही द्रव्य त्याग पाता है। हम धर्म करते हैं और धर्म करने में किसी की सहायता करते हैं तो हमारा पुण्योदय होता है। धर्म ध्यान भी हम तभी कर पाते हैं, जब हमारा पुण्योदय होता है। इससे पूर्व नरेश मुनि जी ने कहा कि अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना ही वरण है। समय रहते ही अपना काम कर लो, धर्म ध्यान कर लो। आज प्रवचन में शांत क्रांति संघ के अध्यक्ष सूरजमल जी गिडिया, श्रमण संघ के शिव कुमार जी संचेती और समाजसेवी तेजकरण जी श्रीश्रीमाल उपस्थित थे।