सावन के अंतिम सोमवार निकली महाकाल की शाही सवारी

अपने दोस्तों को शेयर करें :

राजनांदगांव। पवित्र पुण्य माह श्रवण (सावन), शिव भक्ति का मास माना जाता है। इस वर्ष सावन माह सोमवार से शुरू होकर सोमवार में ही समाप्त हो हुआ। कुल पांच सोमवार पड़े, जो कि 72 वर्ष बाद पड़ा र्है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार सावन मास के पांच सोमवार पढ़ने वाले वर्ष बहुत ही शुभ, फलदायी और उत्तम होते हैं। इन सोमवारों में भगवान भोले शंकर शिव की विशेष आराधना, अभिषेक, पूजा आदि का फल अति उत्तम प्राप्त होता है। आज सावन महीने का अंतिम सोमवार होने के कारण महाकाल की पालकी यात्रा निकाली गई। यह यात्रा शहर के विभिन्न मार्गो से होकर गंतव्य स्थान पर पहुंचकर समाप्त हुई।
महाकाल मंदिर समिति सिंघोला एवं महाकाल सेना द्वारा विगत कई वर्षों से सावन माह के पड़ने वाले प्रत्येक सोमवार को पालकी यात्रा का आयोजन करता आ रहा है। पालकी शोभायात्रा संस्कारधानी नगरी के विभिन्न क्षेत्रों से प्रारंभ होकर किसी एक मंदिर में पहुंच विश्राम लेती है। उज्जैन की तर्ज पर प्रारंभ हुई महाकाल की पालकी यात्रा अब छत्तीसगढ़ प्रदेश की पहचान बन चुकी है। राजनांदगांव से निकलने वाली पालकी यात्रा से प्रेरित हो अब प्रदेश के अन्य जिलों में भी यात्रा प्रारंभ हो चुकी है। सावन माह के अंतिम और पंचम सोमवार को शाही सवारी पालकी यात्रा आज दोपहर 3 बजे निकली।
महाकाल भक्त पवन डागा ने एक जानकारी में बताया कि सावन मास होने के कारण अंतिम व पंचम सोमवार 19 अगस्त को दोपहर 3 बजे संस्कारधानी नगरी राजनांदगांव के माता देवालय, शीतला मंदिर से महाकाल बाबा चंद्रमौलेश्वर की पालकी यात्रा प्रारंभ हुई, जो नगर भ्रमण करते हुए काली माई मंदिर भरकापारा में विश्राम ली। यहां शिव का मिलन शक्ति से हुआ।
महाकाल सेना के पदाधिकारियों ने बताया कि पालकी यात्रा में विशेष रूप से झांझ, मंजीरा, ढोल, नगाड़ा और डमरु का प्रदर्शन हुआ, वहीं स्थानीय लोक कलाकारों द्वारा शिव के अनेक रूप एवं वेशभूषा में सुसर्जित होकर अघोरी नृत्य, तांडव नृत्य आदि का प्रदर्शन भी किया, जो कि शोभायात्रा का विशेष आकर्षण रहा। पालकी शोभायात्रा में एक विशाल महाकाल शिव की प्रतिमा भी साथ रही। महाकाल बाबा की पालकी को वहीं लोग हाथ लगा सके जो धार्मिक मान्यता के अनुरूप पारंपरिक वेशभूषा में रहे।
महाकाल बाबा चंद्रमौलेश्वर की पालकी यात्रा का मार्ग इस प्रकार रहा। नगर देवी माता देवालय शीतला मंदिर से पूजा आरती के पश्चात सोनार पारा, फौव्वारा चौक, महाकाल चौक, सिनेमा लाइन, भारत माता चौक, गंज लाइन, गंज चौक, लोहार पारा होते हुए काली माई मंदिर में विश्राम हुआ।
श्रावण मास के अंतिम सोमवार को निकलने वाली महाकाल की शाही सवारी में शिव भक्तों में अपार उत्साह दिखा। पालकी यात्रा के मार्ग को सजाया संवारा गया था। विशेष रूप से जिस मार्ग से महाकाल बाबा की पालकी शाही सवारी गुजरु उस रास्तों में लाल कार्पेट बिछाया गया।था।
महाकाल की पालकी जिन रास्तों से गुजरी उन मार्गों में अलग-अलग समाज के लोग स्वागत पंडाल लगा रखे थे। शिव भक्तों का अभिनंदन स्वागत किया गया।
संस्कारधानी राजनांदगांव के ग्राम सिंघोला में विशाल मंदिर में लगभग 10 वर्ष पूर्व शिवलिंग स्थापित किया गया। स्थापना वर्ष से ही मंदिर की मान्यता बढ़ने लगी और दर्शन हेतु भक्तों का तांता लगने लगा। विशेष रूप से सावन मास में, प्रत्येक सोमवार को भगवान का जलाभिषेक करने सुबह से दर्शनार्थी पहुंचते हैं। उज्जैन मंदिर की तरह भस्म आरती रात्रि के प्रथम पहर की जाती है यहां मंदिर के अलावा बाबा चंद्रमौलेश्वर महाकाल की एक प्रतिमा (मूर्ति) सन 2021 में लाई गई। जिसकी विधिवत् उज्जैन मंदिर में ही प्राण प्रतिष्ठा की पूजा अभिषेक किया गया था। और अब वही प्रतिमा महाकाल बाबा चंद्रमौलेश्वर की पालकी नगर भ्रमण में निकाली जाती है। ऐसा माना जाता है कि महाकाल बाबा चंद्रमौलेश्वर अपने भक्तों को दर्शन हेतु पालकी में निकलती है, उनके दर्शन मात्र से जीवों का कल्याण हो जाता है। सावन महीने में हर सोमवार को पालकी यात्रा निकाली गई जिसमे भक्तों को उत्साह दिखा। आज भी सावन महीने का अंतिम सोमवार होने के कारण श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही।

अपने दोस्तों को शेयर करें :