दुष्कर्मी नाना को अंतिम सांस तक कारावास का दंड

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राजनांदगांव। 12 वर्षीय नाबालिग नातिन के साथ बलात्कार के एक मामले में फैसला सुनाते हुए न्यायालय माननीय अपर सत्र न्यायाधीश, फास्ट ट्रेक स्पेशल कोर्ट (पाक्सो) राजनांदगांव पीठासीन न्यायाधीश अविनाश तिवारी द्वारा अभियुक्त नाना के विरूद्ध आरोप साबित पाये जाने पर थाना मानपुर क्षेत्रान्तर्गत निवासी अभियुक्त सुकदेव मंडावी, उम्र 55 वर्ष को भारतीय दंड संहिता की धारा 363 के तहत् 3 वर्ष का सश्रम कारावास, भारतीय दंड संहिता की धारा 366 के तहत् 5 वर्ष का सश्रम कारावास, भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (3) के तहत् 20 वर्ष का सश्रम कारावास तथा पॉक्सो एक्ट की धारा 5 (ढ)/6 के तहत् आजीवन कारावास (जिसका अभिप्राय अभियुक्त के शेष प्राकृत जीवन काल के लिये कारावास होगा) एवं उक्त धाराओं में कुल 31500 रूपये का अर्थदंड की सजा से दण्डित किये जाने का दण्डादेश पारित किया गया। मामले में शासन की ओर से पैरवी करने वाले विशेष लोक अभियोजक (पाक्सो एक्ट) राजनांदगांव परवेज अख्तर ने बताया कि,ए 12 वर्षीय पीड़िता के पांचवीं पास होने के बाद गांव में आगे की पढ़ाई की सुविधा न होने के कारण उसके माता-पिता ने आगे पढ़ाई के लिये उसके नाना के यहां भेजा था। पीड़िता अपने नाना के यहां रहकर पढ़ाई कर रही थी। रात्रि में पीड़िता सोयी थी तब रात्रि लगभग 1 बजे नाना सुकदेव मंडावी उसे उठाकर जंगल में ले गया और रिश्तों को कलंकित करते हुये मासूम पीड़िता के साथ जबरदस्ती बलात्कार किया।
कुछ दिन बाद पुनः अभियुक्त सुकदेव मंडावी ने घटना की पुर्नरावृत्ति किया। इसके दो-चार दिन बाद अभियुक्त फिर से पीड़िता को जंगल की तरफ ले जाने लगा तब पीड़िता जोर-जोर से रोने लगी और चिल्लाने लगी जिसकी आवाज सुनकर आसपास के लोग जमा हो गये, तब घटना के संबंध में जानकारी प्राप्त होने पर पीड़िता के भाई ने थाना मानपुर में घटना की रिपोर्ट की। विवेचना पश्चात् थाना प्रभारी मानपुर द्वारा चालान विचारण हेतु विशेष न्यायालय के समक्ष पेश किया गया था।
अभियोजन के द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों तथा उभय पक्षों के द्वारा प्रस्तुत दलीलों को सुनकर विद्वान न्यायालय ने मामले के विचारण के दौरान प्रस्तुत साक्षियों का सूक्ष्मता से परिशीलन करने के पश्चात् अभियोजन द्वारा प्रस्तुत मामले को विश्वसनीय पाते हुये मामले को प्रमाणित पाया और दण्ड के प्रश्न पर विचार करते समय कहा कि, किसी स्त्री पर यौन हमला किया जाता है, तो उसके साथ केवल शारीरिक हिंसा कारित नहीं होती, बल्कि ऐसी मानसिक हिंसा कारित होती है, जिसका जख्म जीवन पर्यन्त रहता है, इसलिए अभियुक्त के प्रति सहानुभूति या उदारता दिखाया जाना उचित नहीं।

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