राजनांदगांव। ग्राम पंचायत सोमनी के शासकीय भूमि की खरीदी-बिक्री की शिकायत में अनुविभागीय अधिकारी राजनांदगांव द्वारा 11 माह बाद निर्णय में आबादी एवं 20 सूत्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत जारी खाली पड़ी भूमि के पट्टों को निरस्त कर पंचायत के उपयोग के लिए आदेश जारी किया गया है।
सोमनी पंचायत द्वारा छत्तीसगढ़ पिछड़ा क्षेत्र विकास प्राधिकरण मद से सामुदायिक भवन का निर्माण आरंभ करते ही झारखंड निवासी संजय तापड़िया द्वारा निर्माणाधीन भवन स्थित भूमि को अपने हक का दावा किए जाने पर यह जानकारी सामने आई कि शासकीय भूमि की रजिस्ट्री हो गई है। आनन-फानन में पंचायत और ग्रामीणों ने मिलकर तत्कालीन कलेक्टर डोमन सिंह को इसकी लिखित शिकायत की। सांसद संतोष पाण्डे को सोमनी दौरे पर इस बारे में अवगत कराया गया तथा लिखित शिकायत की गई। सांसद द्वारा कलेक्टर, राजनांदगांव को कार्यवाही हेतु पत्र लिखा गया। पूर्व सांसद अभिषेक सिंह से भी शिकायत कर कार्रवाई की मांग की गई थी। उन्होंने भी तत्कालीन कलेक्टर से चर्चा कर एफआईआर करने की बात कही थी। इस प्रकरण में दलेश्वर साहू तत्कालीन अध्यक्ष छत्तीसगढ़ पिछड़ा क्षेत्र विकास प्राधिकरण द्वारा भी विधानसभा में प्रश्न के माध्यम से कार्यवाही की मांग की गई थी। तहसीलदार मनीष वर्मा ने राजस्व निरीक्षक और पटवारी की टीम बनाकर जांच की, जिसमें उन्होंने पाया की वास्तव में शासकीय भूमि की रजिस्ट्री की गई है, इसका उल्लेख तहसीलदार के प्रतिवेदन में है। तहसीलदार राजनांदगांव के प्रतिवेदन के आधार पर ही अनुविभागीय अधिकारी राजनांदगांव अतुल श्रीवास्तव द्वारा 1 एकड़ 20 डिसमिल भूमि को पंचायत के उपयोग के लिए स्वतंत्र कर दिया गया है। पूर्व में जारी समस्त पट्टो को जो की 25 से 30 वर्ष पर पूर्व जारी किए गए थे, उन्हें भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 243 सहपठीत धारा 244 के अंतर्गत निर्मित नियमों के पालन नही किए जाने के कारण निरस्त कर दिया गया है।
इस पूरे प्रकरण में गौर करने वाली बात यह है कि प्रकरण इतना हाई प्रोफाइल हो गया है कि इसमें सांसद, विधायक यहां तक की पूर्व के छत्तीसगढ़ पिछड़ा क्षेत्र विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष तथा विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह के निर्देशों के बाद भी प्रशासन ने पूरे 11 महीने निर्णय लेने में लगा दिए। इतना सब होने के बाद भी किसी के ऊपर कोई प्रकरण दर्ज नहीं किया गया न ही कार्यवाही की गई, यहां तक की प्राथमिकी भी दर्ज नहीं की गई। सिर्फ पटवारी को निलंबित कर दिया गया। रजिस्ट्री को निरस्त करने हेतु निर्देश या आदेश भी जारी नहीं किए गए, इससे प्रतीत होता है कि प्रशासन के आगे सत्ता सरकार और नेता भी कितने लाचार हैं। अधिकारियों की ऐसी मनमानी इसी प्रकरण में नहीं बल्कि सैकड़ों मामले ऐसे हैं जो फाइलों में दबे पड़े हैं। इस प्रकरण में तो दोनों बड़े राजनीतिक दल के नेताओं के ही खरीदी-बिक्री में शामिल होने की जानकारी मिली है। स्थानीय नेताओं ने अधिकारियों पर धौस जमाने की बहुत कोशिश की। दलालों के नाम सामने आए हैं, जिन्होंने कूटरचित दस्तावेज तैयार कर इस पूरे मामले को अंजाम दिया उन पर भी किसी प्रकार की कारवाई अधिकारियों द्वारा नहीं की गई।
अब सवाल यह उठता है कि शासकीय भूमि की खरीदी-बिक्री में क्या बड़ा रैकेट काम कर रहा है, क्योंकि आज निलंबित पटवारी पुनः बहाल कर दिया गया। रजिस्ट्रार पर कोई जांच या कार्यवाही नहीं की गई। खरीदी बिक्री करने वाले साफ निकल गए। सामने आए दलालों के नामों पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। जिन जमीनों की रजिस्ट्री की शिकायत की गई उनको निरस्त करने को लेकर भी आदेश में कोई उल्लेख नहीं है। ये सभी प्रश्न जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करता है।